Tuesday 30 September 2014

लेव तोलस्तोय का वृहदाकार महान उपन्यास युद्ध और शांति |

विश्व साहित्य का शायद ही ऐसा कोई प्रबुद्ध पाठक होगा जिसने लेव तोलस्तोय के वृहदाकार महान उपन्यास युद्ध और शांति का नाम न सुना हो । अपनी ६ साल की कड़ी मेहनत और सारी मानसिक शक्ति झोंकने के बाद यह उपन्यास संपन्न हुआ । प्रसिद्द कवि, लेखक, एवं अतिप्रसिद्ध अनुवादक श्री मदनलाल मधु जी ने इसका अनुवाद करने में ३ साल का समय लिया । जो की इसकी वृहद्ता को देखते हुआ लाजिमी था । २११४ पृष्ठों के इस उपन्यास को पढ़ने में मुझे ४५ दिन का समय लगा |
युद्ध और शांति एक ऐतिहासिक उपन्यास है । यूँ तो इस उपन्यास में चार कहानी एक साथ चलती हैं जो की एक दूसरे से आपस में जुडी हुई हैं - बेजुख़ोव परिवार, रोस्तोव परिवार, बोलकोंस्की परिवार एवं रूस और फ्रांस के बीच हुए १८१२ के युद्ध की कहानी ।
तोलस्तोय ने कहा था की युद्ध और शांति सिर्फ एक उपन्यास नहीं है, यह एक उपन्यास से कहीं बढ़कर है और महान लेखक की इस बात से पूरी तरह सहमत हुआ जा सकता है ।
उपन्यास में लेखक ने तत्कालीन रूसी समाज का अत्यंत सजीव चित्रण किया है । युद्ध से पैदा होने वाली विभीषिका, लूटपाट, चोरी, मारा-मारी, भुखमरी को बड़ी बारीकी से छुआ है ।
यूँ तो उपन्यास में कई महत्वपूर्ण किरदार हैं लेकिन ३ किरदार ऐसे हैं जो पाठक में मन में जीवन भर के लिए अंकित होकर रह जाते हैं । यह किरदार हैं - प्येर बेजुख़ोव, अंद्रेई बोलकोंस्की, नताशा रोस्तोवा |
प्येर बेजुख़ोव - प्येर एक सीधा - सादा, लम्बा - तगड़ा, अमीर नौजवान है जो अपने पिता की अवैध संतान है और उसकी अथाह संपत्ति का उत्तराधिकारी । प्येर का एक शुभचिंतक अपनी बेटी हेलेन का विवाह प्येर के साथ करवा देता है । हेलेन बला की खूबसूरत है प्येर उसे पसंद तो करता था लेकिन उसे प्रेम नहीं करता था और इस बात को वो विवाह पूर्व समझ भी चुका था । विवाह के बाद उसकी अपनी बीवी से कभी नहीं बनीं । प्येर को अपनी बीवी के बारे में सोसाइटी में तरह तरह की बदचलनी की खबरें सुनने को मिलती रहती थीं।एक दिन प्येर को उसकी बीवी का पूर्व प्रेमी मिल जाता है और उसके अभद्र व्यव्हार के कारन प्येर उसो द्वंद्व युद्ध की चुनौती दे डालता है| द्वंद्व में दोलोख़ोव (पूर्व प्रेमी) शारीरिक रूप से घायल होता है और प्येर मानसिक रूप से ।
इसके बाद प्येर शहर छोड़कर चला जाता है लेकिन कुछ प्रश्न उसे रस्ते भर परेशान करते रहते हैं जैसे - बुराई क्या है ?, अच्छाई क्या है ?, क्या प्रेम करने योग्य है और क्या घृणा करने योग्य ?, किसलिए जिया जाये ?, मैं क्या हूँ ?, जीवन क्या है ?, मृत्यु क्या है ?, कौनसी शक्ति सभी का सञ्चालन करती है ? यह प्रश्न उसे लगातार परेशान करते रहते और इनके उत्तर में वो केवल एक ही निष्कर्ष निकल पाता की - हम केवल इतना ही जानते हैं की कुछ भी नहीं जानते | और यही साडी मानवीय सूझ-बूझ का सार है ।
अपने उत्तरों की खोज में प्येर फ्री मेसनों के संघ में शामिल होता है लेकिन उसे वहां भी निराशा ही हाथ लगती है । उसे सुख की अनुभूति तब ही होती है जब वह दुसरो के लिए जीना शुरू कर देता है ।
अपने बंदीकाल के दौरान ( प्येर को मास्को में आगजनी के झूठे आरोप में फ़्रांसिसी सैनिकों द्वारा बंदी बनाया जाता है ) प्येर ने वह चैन और आत्म - संतोष पाया जिसके लिए वह अब तक व्यर्थ ही कोशिश करता रहा था ।
अपने बंदीकाल के दौरान ही प्येर को आत्मिक ज्ञान हुआ । उसका विचार था की - हम यह समझते हैं की जैसे ही हमें उस लीक से हटाया जाता है जिसके हम आदि हो जाते हैं, वैसे ही सब कुछ समाप्त हो जाता है । लेकिन यहीं से ही तो कुछ नया और अच्छा शुरू होता है | जब तक जीवन है सुख - सौभाग्य भी है । आगे बहुत कुछ है, बहुत कुछ ।
बंदीकाल से मुक्त होने के बाद प्येर को सुचना मिलती है की उसकी बीवी मर चुकी है । प्येर को एक अजीब सी भावना घेर लेती है । उसे उसकी अच्छाई नजर आने लगती हैं । साथ ही वह मुक्ति के एहसास से खुश भी हो जाता है ।
यूँ तो पएर नताशा को पहली नजर से प्रेम करने लगा था जब वह केवल १२ वर्ष की थी । लेकिन यह बात उसे तब ही समझ में आती जब उसकी शादी हेलेन से हो चुकी होती है । लेकिन बंदीकाल के बाद नताशा को देखने पर उसे महसूस होता है की वह ज़िन्दगी भर केवल एक ही औरत को प्रेम करता रहा है और वह है नताशा ।
प्येर की भावनाएं और उसकी जीवन के उद्देश्य की तलाश ही उपन्यास का केंद्र बिंदु बन जाती है |
अंद्रेई बोलकोंस्की - अंद्रेई एक बहुत ही बुद्धिमान और सुन्दर नौजवान है लेकिन वह अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं है । उसे समाज की उच्च सोसाइटी, बॉल नृत्यों, महफ़िलों से नफरत है, जबकि उसकी बीवी एकदम इसके उलट है । वह अपने जीवन के अस्तित्व और मायने सरीखे सवालों के जवाब की तलाश में बेचैन रहता है । अंद्रेई को जिस बात से सबसे ज्यादा डर लगता है वह है अपनी खिल्ली उड़वाने का डर । अंद्रेई अमर होना चाहता है , कोई ऐसा काम करके , जिसके कारण वो हमेशा याद किया जाता रहे, बेशक उसके बाद उसे मौत आ जाये । अंद्रेई ख्याति पाना चाहता है , प्रेम - पात्र बनना चाहता है, वह सबके दिलों पर अपनी जीत को ही सबसे ज्यादा प्यार करता है । इस ख्याति कीर्ति को ही वह सबसे अधिक मूल्यवान मानता है ।
लेकिन युद्ध के दौरान जब वो घायल होता है और उसे अपनी मृत्यु का आभास होता है जब अंद्रेई को लगा की मृत्यु निश्चित है, की वह मर जायेगा, जब उसने महसूस किया की वह धीरे - धीरे मर ही रहा है , उसे सभी कुछ से विरक्ति तथा अपने अस्तित्व के बारे में प्रसन्नतापूर्ण चेतना की अनुभूति हुई । वह प्यार के बारे में सोचने लगता - प्यार ? क्या चीज है यह प्यार ? प्यार जीवन है । सभी कुछ, वह सब जो में समझता हूँ, इसलिए समझता हूँ की मैं प्यार करता हूँ । सब कुछ केवल उसी के साथ जुड़ा हुआ है । प्यार ही भगवान है । और मरने का मतलब है की मैं, प्यार का एक छोटा सा अंश सामान्य और शाश्वत स्रोत की ओर लौट जाऊंगा ।
जब वो घायल होता है और उसे अपनी मृत्यु का आभास होता है तो उसे जीवन से प्रेम होता है । उसे अब सब कुछ अच्छा लगने लगा था | उस समय वो नताशा के प्यार में होता है (उसकी पहली बीवी की बच्चा जानते समय मृत्यु हो जाती है ) उस समय उसके पूर्व के सरे विचार बेमानी हो जाते हैं और वो हर कीमत पर जीना चाहता है ।
लेकिन जैसा की तोलस्तोय ने कहा है की - मानव जीवन की एक सीमा है और कोई उसे पार नहीं कर सकता । अंद्रेई भी पार नहीं कर सका और मृत्यु को प्राप्त हो गया । यह घटना पाठक के लिए बड़ी ही दुखद होती है क्योंकि पाठक अंद्रेई से असीम प्रेम करने लगता है |
नताशा रोस्तोवा - नताशा के बारे में ज्यादा लिखना मेरे लिए असंभव है । नताशा दुसरो के बोलने के अंदाज़, देखने के ढंग और चेहरे के भावों के सूक्ष्म अंतरों की सबसे अधिक अनुभव करने की अद्भुत क्षमता रखती है । नताशा समझदार, आज़ाद ख्याल, और दो टूक बात करने वाली नायिका है । उपन्यास में उसे ४ बार अलग अलग नायकों से प्रेम होता है, लेकिन विवाह अंत में प्येर से होता है (चूँकि अंद्रेई मर जाता है ) नताशा को समझने के लिए उपन्यास को पढ़ना बहुत ही जरुरी है , बिना पढ़े उसे समझा नहीं जा सकता । उसका चरित्र चित्रण करना भी बड़ा ही मुश्किल है । नताशा तोलस्तोय द्वारा गढ़ा गया एक अत्यंत महत्वपूर्ण चरित्र है ।
सभी किरादर एवं कहानियां आपस में एकदम गुंथी हुई हैं । पाठक को इस उपन्यास को पढ़ने के लिए अपने दिमाग को थोड़ा खोलना होगा और समय निकलना होगा । उपन्यास काफी लम्बा है इसलिए धैर्य की भी जरुरत होगी । युद्ध के वर्णन के अलावा ऐसी कोई भी घटना नहीं होगी जहाँ पाठक को बोरियत महसूस हो । हालाँकि युद्ध की घटनाओं का वर्णन भी अत्यंत सजीव है लेकिन वो तत्कालीन रूसी समाज की लिए ही था । आज के ज़माने के लिए प्रासंगिक नहीं है |
सोमरसेट माम ने कहा था की बालज़ाक महानतम उपन्यासकार हैं और युद्ध और शांति महानतम उपन्यास । पहली बात में मतभेद हो सकता है लेकिन दूसरी बात में नहीं । युद्ध और शांति में तोलस्तोय ने जीवन के सभी पहलुओं को छुआ है । इस वृहद उपन्यास के बारे में अपने अनुभव लिखना मेरे लिए लोहे के चने चबाना जैसा ही है (चूँकि मुझे लिखना नहीं आता ) ।
इतने बड़े उपन्यास को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर इतने करीने से लिखना अपने आप में एक महान काम है, एक जीनियस ही ऐसा कर सकता है । मेरी नजर में यह एक महान रचना है |


Tuesday 6 November 2012

द अलकेमिस्ट निस्संदेह एक महान  रचना 
ब्राजील के जाने माने लेखक पाओलो कोएले की मशूहर कृति है द अलकेमिस्‍ट। इस उपन्‍यास का मुख्‍य किरदार है स्‍पेन के दूरस्‍थ अंचल का गडरिया सेंटियागो है। यह एक ऐसे गड‍रिये की कहानी है जो मुश्किलों को फुटबॉल की तरह ठोकर मारकर दुनिया फतह करने निकला है। द अलकेमिस्‍ट के सेंटियागो की कहानी परी कथा सी लगती है। 
कहानी होने के बावजूद वह जिंदगी के करीब होते हुए असली सी लगती है।  किताब एक गड़रिये की कहानी के माध्यम से जीवन मेंकामयाबी और खुशहाली का मंत्र हमारे सामने रखती है।लेखक का मुख्य जोर उन इशारों पर है जो शगुन या अपशगुन के रूप में कायनात हमारे सामने लाती है। अगर हमउन्हें समझ सकें तो जीवन की डगर आसान हो जाती है। इसकेअलावा किताब सिखाती है कि किसी भी तरह की बाधा आनेके बावजूद हमें अपना पर्सनल अजेंडा नहीं छोड़ना चाहिए। 

 अब तक 65 भाषाओं में किताब का अनुवाद किया जा चूका है । 150 से ज्‍यादा देशों में इस किताब ने बिक्री के नये रिकार्ड रचे और गिनीज बुक ऑफ वर्ल्‍ड रिकार्ड में जगह पाई।
द अलकेमिस्‍ट में पाओलो कोएले लिखते है कि हमें अपने दिमाग से नकारात्मक विचारों की सफाई करते रहना चाहिए। 
किसी किताब पर अगर कमलेश्वर जैसे महारथी साहित्यकार का नाम उसके अनुवादक के रूप में हो, उसकी 6 करोड़ से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हों, देश-विदेश की 65 भाषाओं में जिसका अनुवाद हो चुका हो, तो यह किताब किसी भी साहित्य प्रेमी को पढ़ने के लिए ललचाएगी ही कि आखिर इस किताब में ऐसी क्या चीजें कही गई हैं?
यह अंडलूसिया के रहनेवाले सेंटियागो नाम के उस
 गडरिये की कहानी है, जो एक असीम और भव्य सांसारिक खजाने को प्राप्त करने की इच्छा रखता है | स्पेन में अपने घर से शुरु हुई उसकी यात्रा उसे टेंजियर के बाजारों से होती हुई मिस्र के रेगिस्तानो तक ले जाती है, जहां पिरामिडों को देखने की उसकी इच्छा तो पूरी होती ही है, साथ ही कीमियागर से भी रोमांचक मुलाक़ात होती है|
यह कहानी हमें अपने दिल से आवाज सुनने, अपने जीवन में बिखरे हुए चिन्हों और शकुनों को पढने की और स्वयं अपने सपनों का पूरा करने के लिए प्रयत्नशील रहने की कला सिखाती है |
इस किताब में लोगों की ज़िन्दगी बदल डालने की अद्भुत क्षमता है, मेरी ज़िन्दगी में इस किताब को पढने के बाद भरी बदलाव आये हैं । यह मेरी सबसे पसंदीदा किताब है । वैसे तो मेरे पास इसकी प्रशंसा के लिए शब्द ही नहीं हैं किन्तु फिर भी मैं इतना तो कहूँगा ही की यह मेरे लिए बायबल और गीता से भी बढ़कर है। जिसका संसार में कोई सनी नहीं है ।


निस्संदेह विश्व साहित्य की सर्वश्रेष्ठ रचना । अवश्य पढ़ें ।
 

सेंटियागो के माध्‍यम से किताब यह संदेश भी देती है - 

1) जब तकदीर हमारा साथ दे रही हो तो हमें उसका फायदा उठाना चाहिए। हमें भी उसकी उतनी ही मदद करनी चाहिए , जितनी वह हमारी कर रहा है। 

2) जब आप दिल से कुछ चाहते हैं तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने के लिए साजिश रचती है। 

3) जवानी में आदमी बड़े बड़े सपने देखता है। मगर ज्यों ज्यों वक्त गुजरता है एक अजीब सी ताकत उसे यकीन दिलाने लगती है कि यह नामुमकिन है। 


4) बड़ा झूठ यह है कि हमारी जिंदगी की बागडोर हमारी तकदीर के हाथों में है। 


5)हमें अपने दिमाग से नकारात्मक विचारों की सफाई करते रहना चाहिए। 


6) जब तकदीर हमारा साथ दे रही हो तो हमें उसका फायदा उठाना चाहिए। हमें भी उसकी उतनी ही मदद करनीचाहिए जितनी वह हमारी कर रहा है। 


7) दुनिया में एक जुबान ऐसी भी है जिसे हर कोई समझता है। वह जुबान है उत्साह और उमंग की। 


8) सच्चा प्यार रुकावट नहीं बनता बल्कि लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करता है। 


9) खुशी का राज़ यह है कि दुनिया की तमाम चमकती चीजों को देखें ज़रूर लेकिन अपने पास मौजूद चीजों कोन भूलें।